बोधगया बिहार

गया से थोड़ी दूर पर बौद्धों का सबसे पवित्र स्थान है जिसे हम बोधगया के नाम से जानते हैं . संसार के भिन्न-भिन्न देशों के बौद्ध यहां तीर्थ करने के लिए आते हैं। यही एक पीपल के पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति की थी । अशोक ने 100000 स्वर्ण मुद्रा खर्च कर यहां एक मठ बनवाया। अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा ने यहां से बोधि वृक्ष की एक शाखा लंका में लगाई थी जो वहां अब भी कायम है। अशोक के बनवाए मठ के टूट जाने पर सीथियन राजाओं ने उसी स्थान पर दूसरा मठ बनवाया। वही मंदिर टूटते टूटते और मरम्मत होते वर्तमान रूप में कायम है। 330 ईसवी में लंका के राजा मेघवर्ण ने इस मठ के पास यात्रियों के रहने के लिए बहुत बड़ा भवन बनवाया था। 600 ईसवी में बौद्ध धर्म विरोधी बंगाल के राजा शशांक ने सब को तहस-नहस कर दिया और बोधि वृक्ष को भी जड़ से उखाड़ फेंका। हर्षवर्धन ने फिर से बोधिवृक्ष लगवाया और मठ भी बनवाएं। चीनी यात्री फाह्यान और व्हेनसांग यहां आया था। नवी दसवी शताब्दी में पाल राजाओं के समय यहां की दशा फिर सुधरी। 12 वीं सदी में मुसलमानों के आने पर यहां की दशा फिर खराब हुई। 1884 ईसवी में अंग्रेज सरकार ने ₹200000 खर्च करके मंदिर की मरम्मत कराई। 1876 ईसवी में बोधिवृक्ष आंधी से गिर गया था। जड़ से फिर दूसरा वृक्ष खड़ा हुआ जो इस समय कायम है।

इस समय मंदिर हिंदू महंत के कब्जे में है। हिंदू लोग बुद्ध को विष्णु के दशावतारओं में गिनने लगे हैं। यहां की बुद्ध की मूर्ति को चंदन पहना दिया गया है और हिंदू लोग भी इसे पूजते हैं। मंदिर के पास अशोक के स्तंभ तथा बहुत स्तूप के चिन्ह और मूर्तियां मौजूद हैं। यहां खुदाई करने पर और भी कई चीजें निकली है।

 

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