छठ पर्व में कमर तक पानी में उतरकर क्यों दिया जाता है अर्घ्य, जानें इससे जुड़ी खास बातें

चार दिवसीय छठ पूजा की आज से शुरुआत हो चुकी है। ज्योतिषों के अनुसार, इस बार छठ का पर्व सभी के लिए विशेष फलदायी माना जा रहा है क्योंकि इस पर्व की शुरुआत और समापन विशेष योग के साथ हो रहे हैं। छठ पर्व दो बार मनाया जाता है पहला चैत्र माह में और दूसरा कार्तिक माह में। यह पर्व सूर्यदेव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है और मान्यता है कि छठी मैय्या सूर्यदेव की बहन हैं। इसलिए छठी मैय्या को प्रसन्न करने के लिए सूर्यदेव की पूजा की जाती है और नदियों या तालाब के तट पर सूर्यदेव की आराधना की जाती है। इस पर्व को मनाने वाले लोग खीर, गुड़ की पूड़ियां, सादी पूरियां और अलग-अलग तरह की मिठाइयां बनाते हैं।

छठ से जुड़े से कई पौराणिक संदर्भ

छठ का त्योहार देवी-देवताओं के साथ-साथ प्रकृति व कृषि की उन्नति का प्रतीक है। यही एक पर्व है, जहां अस्ताचल सूर्य की पूजा होती है और प्रशाद में आटे व गुड़ से बने ठेकुआ के अलावा केले, कच्ची हल्दी, बैंगन, शकरकंद आदि चढ़ाए जाते हैं, जो कि कृषी का प्रतीक हैं। इस पवित्र में बांस व मिट्टी से बने बर्तन का ही इस्तेमाल किया जाता है, जो सामाजिक सहभागित को दर्शाता है।

इसलिए पानी में किया जाता है प्रवेश

ग्रहों के राजा सूर्य को भगवान विष्णु का प्रत्यक्ष रूप माना जाता है। कार्तिक मास में भगवान विष्णु जल में निवास करते हैं। मान्यता है कि नदी या तालाब में कमर तक प्रवेश कर अर्घ्य देने से भगवान विष्णु और सूर्य दोनों की पूजा एकसाथ हो जाती है। वहीं यह भी मान्यता है कि पवित्र नदियों में प्रवेश करने से सभी पाप व कष्ट खत्म हो जाते हैं इसलिए जल में अर्घ्य देने की पंरपरा है। नदी व तालाब में प्रवेश करने को लेकर एक और मान्यता यह भी है कि अर्घ्य देते समय जो जल निचे गिरता है, उस जल का छींटा भक्तों के पैरों पर न पड़े इसलिए अर्घ्य पानी में उतरकर दिया जाता है।

सूर्यदेव की मानस बहन हैं छठी मैय्या

शास्त्रों में बताया गया है कि षष्ठी माता भगवान सूर्य की मानस बहन हैं। मान्यता है कि सूर्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए शक्ति की आराधना के रूप में उनकी बहन की पूजा की जाती है। दूसरी ओर प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई थीं। उनको भगवान विष्णु ने बालकों की रक्षा करने के लिए रची माया के नाम से जाना जाता है। इसलिए यह पर्व संतान की कामना करने के लिए किया जाता है। साथ ही छठी मैय्या का मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी भी माना जाता है।

सूर्य की पूजा से सभी समस्याओं से मिलती है मुक्ति

सुबह सूर्य पूजा करना स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है और यश की प्राप्ति होती है, वहीं सांयकाल के समय अर्घ्य देने से जीवन में संपन्नता आती है। माना जाता है कि सांयकाल के समय सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्युषा के साथ रहते हैं। यही कारण है कि शाम के समय सूर्य को जल देने से प्रत्युषा देवी प्रसन्न होती हैं। इससे भक्तों के घर संपन्नता आती है और उनको सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।

कृषि से जुड़ा है छठ पर्व का हर तार

चार दिवसीय छठ में वैसे तो कई प्रशाद चढ़ाए जाते हैं लेकिन ठेकुए का अलग महत्व है। ठेकुआ गुड़ व आटे से बनता है। यह समय गन्ने के काटने का होता है और गन्ने से गुड़ बनता है। बताया जाता है कि छठ के साथ ही सर्दी के मौसम की शुरुआत हो जाती है। ऐसे में ठंड से बचने और स्वस्थ्य रहने के लिए गुड़ फायदेमंद होता है। इस चलते ठेकुआ चढ़ाने की पंरपरा है। प्रशाद बनाने के लिए गेंहूं की सफाई की जाती है, इसलिए इस पर्व को श्रम से भी जोड़ा जाता है।

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