मर जाते हैं साहब जी (कविता)- उत्कर्ष आनंद ‘भारत’

देश-दुनिया लगातार दूसरे साल भी कोरोना महामारी से जूझने को विवश है। बद से बदतर होते हुए आज हालात ऐसे हो गए हैं कि हर तरफ इंसान के शारीरिक और मानसिक मौतों का मंजर ही दिख रहा है। जब उत्सवों का बाजार नरम और कफ़न का बाज़ार चरम पर हो, ऐसे में एक कवि मन … Read more