देश-दुनिया लगातार दूसरे साल भी कोरोना महामारी से जूझने को विवश है। बद से बदतर होते हुए आज हालात ऐसे हो गए हैं कि हर तरफ इंसान के शारीरिक और मानसिक मौतों का मंजर ही दिख रहा है। जब उत्सवों का बाजार नरम और कफ़न का बाज़ार चरम पर हो, ऐसे में एक कवि मन के अंदर उठते सैलाब को शब्दों में बांधने की कोशिश की है पटना के उदीयमान कवि श्री उत्कर्ष आनन्द ‘भारत’ जी ने, आइये पढ़ते हैं:-
भूख लगी है साहब जी
महँगाई है साहब जी
इससे ज्यादा बोलो क्या
कर पाते हम साहब जी
मर जाते हैं साहब जी
सांस सांस अब अटक रही
ऑक्सीजन भी नहीं कहीं
कहाँ दवा है किसे पता
अस्पताल में बेड नहीं
जीने की छोड़ो मालिक
मरने पर भी जगह नहीं
राज मुबारक तुमको ही
कर जाते हैं साहब जी
मर जाते हैं साहब जी
एम्बुलेंस पैसा ढोता
क्या उम्मीदों का होगा
टैक्स लगा मरने पर भी
जीना सोचो क्या होगा
अंतिम कर्ज अदाई ये
कर जाते हैं साहब जी
मर जाते हैं साहब जी
– उत्कर्ष आनन्द ‘भारत’
Khemanichak , Near Ford Hospital Budhiya Mayi Mandir,Bihata Bmp8 Patna Raja Bazar,Patna
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