“एक काबुली वाले की कहते हैं लोग कहानी,
लाल मिर्च को देख गया भर उसके मुंह में पानी
सोचा, क्या अच्छे दाने हैं, खाने से बल होगा
यह ज़रूर इस मौसम का कोई मीठा फल होगा|”
उपर्युक्त पंक्तियों से क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ‘बिहार राज्य’ की विशेष श्रृंखला ‘एक बिहारी ’ की आज की कड़ी में चर्चा किसकी होने जा रही है? आज चर्चा के केंद्र में हैं भारत के राष्ट्रकवि और इन पंक्तियों के रचयिता रामधारी सिंह दिनकर, जिन्होंने बिहार ही नहीं बल्कि पुरे देश को कलम की ताकत के आगे नतमस्तक कर दिया, जिनकी रचनाएँ आज भी काव्य से जुड़े हर व्यक्ति के लिए प्रथम पाठशाला हैं| वो दिनकर, जो मुख्यतः ओज का कवि माने गये , जो स्वतंत्रता अभियान से जुड़े रहे और स्वतंत्रतता प्राप्ति के पश्चात तीन बार राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे| उन्होंने अपनी कलम से अत्यंत कोमल भावनाओं के साथ बाल-साहित्य (मिर्च का मज़ा, सूरज का ब्याह) व उर्वशी जैसा मर्मस्पर्शी काव्य भी रचा है|
दो में से क्या तुम्हे चाहिए
कलम या की तलवार
मन में ऊँचे भाव की
तन में शक्ति विजय अपार
दिनकर न सिर्फ साहित्य अकादमी (१९५९), पद्म विभूषण (१९५९), ज्ञानपीठ (१९७२) इत्यादि सम्मानों से नवाजे गये, बल्कि वे अपनी कृतियों के ज़रिये जन-जन के जीवन का हिस्सा भी बने| चाहे रश्मिरथी हो, कुरुक्षेत्र हो, उर्वर्शी, रेणुका, हुंकार या परशुराम की प्रतीक्षा, उनकी रचनाओं का स्वर सर्वथा चिंतन का केन्द्र रहा| साथ ही कई गद्य कृतियां भी प्रकाशित हुईं| हिंदी-साहित्य के प्रमुख स्वर, दिनकर, के बारे में प्रचलित रहा है कि वे नेहरु के प्रशंसक थे| नेहरु को समर्पित गद्य “लोकदेव नेहरु” में वो लिखते हैं कि वो नेहरु के भक्त हैं|बावजूद इसके जब वो साहित्यिक होते हैं तो राष्ट्र-प्रेम में नेहरु की कुछ नीतियों का सशक्त विरोध भी दर्ज करते हैं| छायावादेत्तर काल में वो राष्ट्रीय चेतना के शिखर कवि रहे हैं| वो अपनी काव्य-यात्रा को लेकर हमेशा विचारमग्न रहे और यही कारण रहा कि उनकी रचनाओं में विचार तत्व प्रचुर मात्रा में मिले| ऐसा कहा जाता है कि अपने जीवन के अंतिम समय में वो रश्मिरथी का पाठ किया करते थे|
जिस मिट्टी ने लहू पिया,
वह फूल खिलायेगी ही,
अम्बर पर घन बन छायेगा
ही उच्छवास तुम्हारा।
और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।
बिहार बेगुसराय जिले के सेमारियाँ गाँव से निकलकर विश्वपटल पर हिंदी भाषा साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर बने कवि दिनकर के बारे में समकालीन कवि हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते हैं कि वे अहिन्दी भाषी जनता में भी बहुत लोकप्रिय थे क्योंकि उनका हिंदी प्रेम दूसरों की अपनी मातृभाषा के प्रति श्रद्धा और प्रेम का विरोधी नहीं, बल्कि प्रेरक था| उनकी लोकप्रियता आज भी बदस्तूर जारी है, तभी आज का युवा काव्य का प्राथमिक ज्ञान लेने या फिर उच्च-स्तरीय ज्ञान लेने हेतु दिनकर को ज़रूर याद करता है| पटना के युवा कवि उत्कर्ष आनंद ‘भारत’ के शब्दों में-
“पौरुष का ज्वाल जगाने वाले
मानवता के उच्च शिखर
तुमसे माँ हिंदी शोभित है,
नमामि दिनकर! नमामि दिनकर!”
कविताओ के साथ-साथ दिनकरजी ने सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर भी अपनी कविताये लिखी है, जिनमे उन्होंने मुख्य रूप से सामाजिक-आर्थिक भेदभाव को मुख्य निशाना बनाया था। आपातकालीन समय में जयप्रकाश नारायण ने रामलीला मैदान पर एक लाख लोगो को जमा करने के लिये दिनकर जी की प्रसिद्ध कविता भी सुनाई थी : सिंघासन खाली करो के जनता आती है।
सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।
मुख्य कविताये
Khemanichak , Near Ford Hospital Budhiya Mayi Mandir,Bihata Bmp8 Patna Raja Bazar,Patna
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