माई (भोजपुरी कविता ) मनोज भावुक

मनोज भावुक का जन्म 2 जनवरी 1976 को सीवान (बिहार) में हुआ था . मनोज भावुक भोजपुरी के सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार हैं जो  पिछले 15 सालों से देश और विदेश में  भोजपुरी भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभा रहे है । प्रस्तुत है इनकी एक भोजपुरी गीत  जो दिल के काफी करीब है –

माई – भोजपुरी कविता 

मनोज भावुक

अबो जे कबो छूटे लोर आंखिन से
बबुआ के ढॉंढ़स बंधावेले माई
आवे ना ऑंखिन में जब नींद हमरा त
सपनो में लोरी सुनावेले माई

बाबूजी दउड़ेनी जब मारे-पीटे त
अंचरा में अपना लुकावेले माई
छोड़ीना, बबुआ के मन ठीक नइखे
झूठहूं बहाना बनावेले माई

ऑंखिन का सोझा से जब दूर होनी त
हमरे फिकिर में गोता जाले माई
आंखिन का आगा लवटि के जब आई त
हमरा के देखते धधा जाले माई

अंगना से दुअरा आ दुअरा से अंगना ले,
बबुआ का पाछे ही धावेले माई
किलकारी मारत, चुटकी बजावत,
करि के इषारा बोलावेले माई

हलरावे, दुलरावे, पुचकारे प्यार से
बंहियन में झुला झुलावेले माई
अंगुरी धराई, चले के सिखावत
जिनिगी के ´क-ख´ पढ़ावेले माई

गोदी से ठुमकि-ठुमकि जब भागी त
पकिड़ के तेल लगावेले माई
मउनी बनी अउर “भुंइया लोटाई त
प्यार के थप्पड़ देखावेले माई

पास-पड़ोस से आवे जो ओरहन
काने कनइठी लगावेले माई
बकी तुरन्त लगाई के छातीसे
बबुआके अमरित पियावेले माई

जरको सा लोरवा ढरकि जाला अंखिया से
देके मिठाई पोल्हावेले माई
चन्दाममा के बोला के, कटोरी में
दूध- भात गुट-गुट खियावेले माई

बबुआ का जाड़ा में ठण्डी ना लागे
तापेले बोरसी, तपावेले माई
गरमी में बबुआके छूटे पसेना त
अंचरा के बेनिया डोलावेले माई

मड़ई में “भुंइया “भींजत देख बबुआ के
अपने “भींजे, नाभिंजावेले माई
कवनो डइनिया के टोना ना लागे
धागा करियवा पेन्हावेले माई

“भेजे में जब कबो देर होला चिट्ठी त
पंडित से पतरा देखावेले माई
रोवेले रात “भर, सूते ना चैन से
भोरे भोरे कउवा उचरावेले माई

जिनिगी के अपना ऊ जिनिगी ना बूझेले

‘बबुए नू जिनिगी ह’ बोलेले माई
दुख खाली हमरे ऊ सह नाहीं पावेले
दुनिया के सब दुख ढो लेले माई

‘जिनिगी के दीया’ आ ‘ऑंखिन के पुतरी’
‘बुढ़ापा के लाठी’ बतावेले माई
‘हमरो उमिरिया मिल जाए हमरा बबुआ के’
देवता-पितरके गोहरावेले माई

साभार – कविताकोश

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