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Friday, March 17, 2023

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जगन्नाथ मंदिर की ये है खूबिया

धार्मिक आस्था रखने वाले हमारे देश में अनगिनत मंदिर है और हर मंदिर की अपनी -अपनी कहानी भी है इस देश में ऐसे -ऐसे मंदिर है जो हज़ारो साल पुराने है और अपने अन्दर अनेक राज छुपाये है जिन्हें आज तक कोई भी नहीं समझ पाया है ! भारत के हर मदिर पर दुनिया के बड़े से बड़े वैज्ञानिक ने रिसर्च किया लेकिन उनके रहस्य के आगे उनको ही झुकना पड़ गया ! आज हम आपको ऐसे ही एक रहस्यमयी मंदिर के बारे में बताएँगे जिसके बारे में सुनकर आप हैरान हो जायेंगे !

 

 

ओड़िसा का जग्गनाथ पूरी मंदिर, भगवान् श्री कृष्ण का मंदिर है !  चारो धाम मे से एक धाम है ये मंदिर ! ये पवित्र मंदिर पूरी दुनिया में मशहूर है और हर साल इस मंदिर के दर्शन के लिए दुनिया के हर कोने से लोगो की भीड़ लग जाती है ! ओड़िसा के समुद्र के किनारे स्थापित ये मंदिर बहुत ही शांत है कहा जाता है कि मंदिर के बाहर जो सागर की लहरों का शोर बहुत जोर जोर से सुनाई देता है, इस मंदिर में आने के बाद कोई सागर की किसी लहर की आवाज़ नहीं सुनाई देती जो कि बहुत ही आश्चर्यचकित बात है !

मंदिर के प्रासाद में नही आती कोई कमी

मंदिर के अन्दर पकाया जाने वाला प्रसाद कभी भी कम नहीं होता ! मंदिर के अन्दर प्रसाद तब तक बंटता रहता है जब तक शर्धालू ख़तम नही हो जाते, यहाँ हर रोज हज़ारो और लाखो की संख्या में शर्धालू आते है जिनके लिए रोज लंगर लगाया जाता है इस लंगर में भी कभी कमी नहीं आती जिसका कारण है इस मंदिर की रसोई में छुपा रहस्य ! दरअसल इस मंदिर में  प्रसाद पकाने के लिए 7 किस्म के बर्तनों को एक साथ पकाने के लिए रखा जाता है लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि इसमें सबसे ऊपर रखे हुए बर्तन में प्रसाद सबसे पहले पकता है फिर उसके निचे रखे बर्तन में और फिर उसके निचे ! भगवान् को चढाने वाले महा प्रसाद को बनाए के लिए 500 रसोईये, 300 उनके सहायक यानी 800 लोग काम करते है

शिखर का झंडा बहता है उल्टी दिशा में

जगान्थान मंदिर एकलौता ऐसा मंदिर है जिसके शिखर पर लगे झंडे को रोज बदल दिया जाता है इस मंदिर की एस मान्यता है की यदि एक दिन भी इसका झंडा नहीं बदला जायेगा तो ये मंदिर 18 साल के लिए बंद हो जायेगा इसलिए मंदिर का पुजारी रोज इस झंडे को इतनी ऊँचाई पर चढ़ कर बदल देता है लेकिन सबसे हैरान कर देने वाली बात ये है कि ये झंडा हमेशा आने वाली हवा के विपरीत दिशा में बहता है ! जिसका रहस्य आज तक कोई नहीं पता लगा पाया है ! शिखर पर लगे झंडे के साथ एक सुदर्शन चक्र लगाया गया है जिसे हर दिशा से देखने पर उसका मुह आपको आपकी तरफ ही दिखाई देगा ! इस मंदिर की एक और बात हैरान करने वाली है कि इस मंदिर की ईमारत की कोई छाया नही है !

मंदिर का खजाने का रहस्य

चौंतीस साल बाद साल 2018 में ओड़िसा हाई कोर्ट की परमिशन से 16 लोगो की टीम इस मंदिर के खजाने की जांच करने के लिए आई थी जिसके 2 महीने के बाद इस खजाने के कमरे की चाबी खो गयी थी जिसका पता आज तक नहीं चल पाया है जांच करने वाली टीम ने रत्न भण्डार के रक्षक की मूर्ति की शपथ लेकर जाँच शुरू की थी कि वहां की किसी बस्तु को और खजाने वो हाथ नहीं लगायेंगे उनका काम केवल सुरक्षा की जाँच करना था !

 

इस मंदिर के बारे में ये भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 7वि सदी में किया गया था ये अब तक ये मंदिर 3 बार टूट चूका है 1174 ईवी में इस मंदिर को दुबारा अनंग भीमदेव ने बनाया था ! कहा जाता है कि राजा इंद्र देवमान को सपने में भगवान् विष्णु ने दर्शन दिए और कहा कि नीलांचल परवर्त की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है जिसे नीलमाधव कहते है उस मूर्ति को एक मंदिर बनवा कर स्थापित कर दो ! जिसके बाद राजा के सेवक नीलमाधव की मूर्ति को एक कबीले से चुरा लाये जो इस मूर्ति की पूजा करते थे लेकिन मूर्ति चुराने के कारण नीलमाधव की मूर्ति नाराज़ होकर वापिस चली गयी और राजा से बचन देकर गयी की वो वापिस जरुर आयेंगे लेकिन पहले वो उनके लिए  मंदिर बनाए !

राजा ने मंदिर बनाया और भगवान् विष्णु से आने की विनती की भवान विष्णु ने कहा कि पहले समुद्र में द्वारिका तैर कर आ रहा पेड़ का बड़ा टुकड़ा उठा कर लाओ और उससे मेरी मूर्ति बनायो ! राजा के काफी कोशीश करने के बाद भी वो टुकड़ा न उठा पाए जिसके बाद राजा ने उसी कबीले के मुखिया से मदद मांगी और पेड़ का टुकड़ा उठा लाये लेकिन कोई भी उससे भगवान् की मूर्ति न बना सका जिसके बाद विशकर्मा भगवान एक वृद्ध व्यक्ति का रूप धारण कर आये और मूर्ति बनाने के लिए राज़ी हो गए लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि जब तक मैं मूर्ति न बना कोई भीतर न आये लेकिन रानी को उनका काम देखने की उत्सुकता हुयी और रानी के कहने पर राजा ने कमरा खोल दिया ! जैसे ही कमरा खोला तो वृद्ध व्यक्ति वहां से गायब हो गया और कमरे में 3 अधूरी मुर्तिया पड़ी थी जिसे राजा ने भगवान् की इच्छा मान कर ऐसे ही मंदिर में स्थापित कर दिया और आज तक उनकी अधूरी मूर्तियों की ही पूजा होती है ! पुराणों के अनुसार इस मंदिर को धरती का वैकुण्ठ कहा जाता है

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