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वैशाली

ऐतिहासिक काल में वैशाली में हम वृज्जियो का गणतंत्र शासन पाते हैं। इस समय शासन केंद्र मिथिला नगर या जनकपुर से हटकर वैशाली चला आया था। इस जिले में हाजीपुर से 20 मील उत्तर पश्चिम बसाढ़ नामक स्थान है। उसी का पुराना नाम वैशाली था। वृज्जियो का शासन संघ शासन था जिसमें विभिन्न जाति के 8 छोटे-छोटे राज्य थे। इनमें लिच्छवियों का राज्य सबसे प्रधान था । मगध के राजा बिंबिसार ने एक लिच्छवी राजकुमारी से भी विवाह किया था। जिससे अजातशत्रु नाम का एक पुत्र उत्पन्न हुआ था। सयाना होने पर अजातशत्रु ने लिच्छवियों पर चढ़ाई कर उनकी राजधानी वैशाली पर अधिकार जमा लिया। वह अपनी विजयी सेना लेकर हिमालय की तराई तक गया । और समूचे तिरहुत पर अपना आधिपत्य कायम किया । लिच्छवियों को दबाए रखने के लिए उसने गंगा किनारे पाटलिग्राम जो कि वर्तमान में पटना है में एक किला बनवाया । जहां पीछे मगध की राजधानी कायम हुई।

वैशाली राज्य वैदिक युग में स्थापित किया हुआ समझा जाता है। रामायण में लिखा है कि इक्ष्वाकु के एक लड़के विशाल ने विशाल नगर बसाया जो कुछ दिनों के बाद वैशाली नाम से प्रसिद्ध हुआ। विशाल के वंश में क्रम से हेमचंद्र, सुचंद्र, धुम्राश्व, श्रीजय , सहदेव, कुशाश्व, सोमदत्त, काकुष्ठ और सुमति नमक राजा हुए

जैन धर्म के प्रवर्तक वर्धमान महावीर की जन्मभूमि वैशाली नगरी ही थी । उनके पिता सिद्धार्थ क्षत्रियों के सरदार थे। यह लोग वैशाली के एक उपनगर कोलाग नामक स्थान में रहते थे। इसलिए महावीर को लोग वैशालीय या वैशालीक भी कहते हैं। बौद्ध ग्रंथों में इन्हें नाटपुत्र कहा गया है।

वैशाली के मुख्यतः तीन भाग थे – वैशाली ,कुंद ग्राम और बनिया ग्राम। जिनमें मुख्यतः क्रम से ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य रहते थे। यह नगर अब बिल्कुल नष्ट हो गए हैं, लेकिन इनके स्थान पर अभी स्पष्ट मालूम होते हैं पड़ते हैं और यहां इन दिनों क्रम से बसाढ़, बसुकुन्द और बनिया गांव बसे हुए हैं। सिद्धार्थ का विवाह यहां के तत्कालीन राजा चेतक की पुत्री त्रिशला से हुआ था। त्रिशला को लोग विदेहदत्ता या प्रियकारिणी भी कहते हैं। इन्हीं के गर्भ से वर्धमान महावीर का जन्म ईसा से 599 पूर्व हुआ था। इसी चेतक की एक दूसरी पुत्री से मगध के राजा बिंबिसार का विवाह हुआ था।

महावीर जब 30 वर्ष की अवस्था में थे तभी उन्होंने घर द्वार छोड़कर सन्यास ग्रहण किया था। केलाग में नाय क्षत्रियों ने एक सुंदर वाटिका के अंदर एक चैत्य या धार्मिक मठ बनवाया था। जिनमें जैन धर्म के मूल प्रवर्तक पार्श्वनाथ के संप्रदाय के सन्यासी रहा करते थे । पहले तो घर छोड़कर महावीर यही आए। लेकिन 1 वर्ष के बाद जब उनका मन यहां नहीं लगा तो वह बाहर निकल पड़े और बिल्कुल नग्न अवस्था में रहकर अपने धर्म का प्रचार करने लगे । उनके बहुत से शिष्य हुए और उनका धर्म जैन धर्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ । ईसा के 490 वर्ष पूर्व महावीर की मृत्यु हुई।

 

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