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सारण जिला

सारण जिला तिरहुत कमिश्नरी के पश्चिम भाग में 25 डिग्री 36 मिनट और 26 डिग्री 36 मिनट उत्तरी अक्षांश तथा 53 डिग्री 54 मिनट और 54 डिग्री 12 मिनट पूर्वी देशांतर के बीच में स्थित है ।

गंगा सरयू और गंडक यह तीनों नदियां इसे घेरे हुई है । जिले के अंदर कोई पहाड़ नहीं है । प्राकृतिक रूप से जिले की जमीन तीन भागों में बांटी जा सकती है । पहले भाग में बड़ी नदियों के आसपास की नीची भूमि है जो कुछ समय तक बाढ़ के पानी से डूब जाती है। दूसरे भाग में जिले के उच्च भूमि और तीसरे भाग में दियारे की जमीन है । जिले के अंदर बहुत से चौर है । सबसे बड़ा हरदिया चौर है जो सोनपुर से 20 मील लंबा गंडक बांध के साथ चला गया है। दूसरा चौर मिर्जापुर के पास है जो 5-6 मिल लंबा और दो से 3 मील चौड़ा है।

सारण शब्द की उत्पत्ति के संबंध में कई मत है । जनरल कनिंघम का मानना था कि सारण शब्द शरण से बना हुआ है जिसका अर्थ होता है आश्रय । वह शरण शब्द का संबंध एक बौद्ध कथा से बताते हैं । कथा है कि एक बार बुद्धदेव ने इस स्थान पर एक असुर को परास्त कर उसे बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। उसके बुध धर्म और संघ की शरण में जाने की स्मृति कायम रखने के लिए अशोक में यहां शरण स्तूप बनवाया। वह शरण स्तूप धार्मिक दृष्टि से इतना महत्वपूर्ण समझा गया इस जिले का नाम बदलकर सारण हो गया।

कुछ लोग सारंगारण्य शब्द से जिसका अर्थ हिरण का वन है, सारण शब्द की उत्पत्ति बताते हैं । लोगों का कहना है कि छपरा से कुछ मिल पूरब सिंगाही नामक स्थान में सुप्रसिद्ध ऋष्यश्रृंग का आश्रम था। उस समय वह स्थान हिरणो से भरा घना जंगल होने कारण सारंगारण्य कहलाता था

सारण जिले के प्राचीन इतिहास का कुछ पता वेदों से चलता है । लिखा है कि जब आर्य लोग पंजाब से पूरब की ओर बढ़ रहे थे तो सरस्वती नदी किनारे आ बसे। फिर वहां से चलकर गंडक के किनारे पहुंचे। बहुत से लोगों ने नदी पार कर मिथिला में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। बाकी लोग उसी स्थान पर बस गए जो आज सारण कहलाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस जिले में पहले आदिम जाति के लोग रहते थे। पीछे आर्यों ने उन्हें परास्त कर मार भगाया। आदिम जातियों में चेरो जाति के लोग यहां कई शताब्दी तक राज्य करते रहे ।ऐतिहासिक काल में सारण कौशल देश का पूर्वी भाग था। गंडक कौशल को मिथिला से अलग करती थी।

सारण जिले का सबसे पुराना स्मृति चिन्ह छपरा से 34 मील उत्तर पूरब दिघवा दुबौली में मिला हुआ ताम्रपत्र है। यह ताम्रपत्र श्रावस्ती अर्थात बनारस के राजा महेंद्र पाल द्वारा 761 -62 में पनियाक गांव के दान में दिए जाने के संबंध में लिखा गया था। उस समय सारणी श्रावस्ती राज्य के पूर्वी भाग था।

सारण के इतिहास में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम प्रसिद्ध है। इस समय सारण और चंपारण एक ही जिले थे। जब विद्रोह की आग भड़की तो सुगौली के मेजर होम्स ने जोरो से दमन जारी किया। आंदोलनकारियों ने मेजर होम्स और दूसरे अफसरों को मार डाला। वहां से यह लोग आजमगढ़ की ओर रवाना हुए। रास्ते में उन सब ने सिवान के डिप्टी मजिस्ट्रेट और अफीम के सब डिप्टी एजेंट के घर पर धावा किया । गोरखपुर की सीमा के पास सोहनपुर में 7000 स्वतंत्रता युद्ध के सैनिकों के साथ मुठभेड़ हुई । साहब गंज में भी लड़ाई मची लेकिन अंत में धीरे-धीरे आंदोलन को दबा दिया गया । 1866 ईसवी में चंपारण एक अलग जिला कायम कर दिया गया।

सारण जिले की बोली भोजपुरी है। पहले सारण जिले में छपरा गोपालगंज और सिवान तीनो सब डिवीज़न थे । बाद में सिवान और गोपालगंज अलग जिले बना दिये गए।

छपरा से सात कोस पूरब एक गांव है जिसे अंबिका स्थान या आमी भी कहते हैं। यहां अंबिका भवानी का मंदिर है। पुराण प्रसिद्ध कथा है कि जब दक्ष कन्या सती ने अपने पति शिवजी के अपमान के कारण अपने पिता के यज्ञ में प्राण त्याग किया था, तो शिवजी उनके शव को लेकर क्रोध वश इधर उधर घूमने लगे थे । जगत के नाश होने के भय से विष्णु ने अपने चक्र से सबको खंड खंड कर दिया था। जो भिन्न-भिन्न स्थानों पर जा गिरा। कहते हैं कि यहां भी एक खंड गिरा था जिसके कारण इस स्थान की प्रसिद्धि हुई । पास में ही यज्ञ कुंड का स्थान बताया जाता है। चैत में यहां मेला लगता है ।

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